1 जनवरी 1961 को समायोजित, एफ.सी.आई.एल. का पुनर्गठन 1.4.1978 में हुआ था। पुनर्गठन योजना के अन्तर्गत सिंदरी (झारखण्ड), गोरखपुर (उ.प्र.) तलचर (ओडिशा), रामागुण्डम (तेलंगाना) के चालू फर्टिलाईजर प्लांट और कोरबा (छत्तीसगढ़) का परियोजना स्थल तथा जोधपुर खनन संस्थान (राजस्थान) को सम्मिलित कर एफ.सी.आई.एल. का गठन किया गया था।
एफ.सी.आई.एल. की पूरी निवल पूँजी ह्यस हो जाने के कारण इसे बी.आई.एफ.आर. को संदर्भित किया गया था तथा नवम्बर 1992 में इसे सिका‘ 1985 के अन्तर्गत रूग्ण घोषित किया गया था। आर्थिक दृष्टि से प्रचालन व्यवहारिक न होने के कारण भारत सरकार ने 2002 में एफ.सी.आई.एल की सभी इकाईयों के प्रचालन को बंद करने और सभी कर्मचारियों को वी.एस.एस. के अंतर्गत सेवामुक्त करने का निर्णय लिया।
सभी फर्टिलाईजर एककों को बंद करने और जोधपुर खनन संस्थान को अलग कम्पनी बनाने के भारत सरकार के सितम्बर 2002 के निर्णय के परिणामस्वरूप सभी 5712 कर्मचारियों को स्वैच्छिक सेवा निवृति योजना (वी.एस.एस.) प्रस्तावित की गयी। कुछ कर्मचारियों को छोड़कर जिन्हंे कम्पनी के सांविधिक दायित्वों और साथ ही एककों के साज-सामान और परिसम्पत्ति को संभालने और सुरक्षा और साथ ही कम्पनी के पुनर्जीवन के लिये रखा गया ह,ै शेष सभी कर्मचारियों को, जिन्होने वी.एस.एस. को चुना था को सेवानिवृत कर दिया गया है।
जोधपुर खनन संस्थान को एफ.सी.आई.एल से अलग कर अप्रेल 2004 में एफ.सी.आई.एल के पुनर्जीवन योजना के अंतर्गत पृथक कम्पनी फैगमिल का गठन किया गया है।
देश में यूरिया की कमी को देखते हुये और एफ.सी.आई.एल. के एककों में उपलब्ध बड़ी मात्रा में भूमि, आधारभूत संरचना, रेलमार्ग, जल और विद्युत को देखते हुये वर्ष 2007 में भारत सरकार ने एफ.सी.आई.एल. के सभी एककों को पुनर्जीवित करने का निर्णय लिया।
भारत सरकार ने सितम्बर 2008 में यूरिया के क्षेत्र में नये निवेश की नीति को स्वीकृति प्रदान की।
भारत सरकार ने अक्टूबर 2008 में ई.सी.ओ.एस. की एक कमेटी का गठन किया ताकि वह सभी विकल्पों का मूल्यांकन कर किस प्रकार से एफ.सी.आई.एल./एच.एफ.सी.एल. की बन्द इकाइयों को पुनर्जीवित किया जा सकता है और सरकार के विचारार्थ अपनी उपयुक्त संस्तुति प्रस्तुत करे।
ई.सी.ओ.एस. द्वारा पुनर्जीवन के लिये उपयुक्त माडल प्रस्तुत किये जाने के पश्चात 4.8.2011 को भारत सरकार ने अन्ततः प्रत्येक एकक को निश्चित पार्टियो (सार्वजनिक एवं निजी क्षेत्र मिश्रित रूप में) को देने का निश्चय किया।
सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों द्वारा पुनर्जीवित करने के लिए नोमिनेशन रूट ( आर.सी.एफ. गेल और सी.आई.एल. द्वारा तलचर एकक, एन.एफ.एल.और ई.आई.एल.द्वारा रामागुण्डम एकक और सेल द्वारा सिन्दरी एकक तथा गोरखपुर व कोरबा को ‘बिडिंग रूट‘ से निजी क्षेत्र द्वारा पुनर्जीवित करने का निर्णय लिया गया।
तत्पश्चात सी.सी.ई.ए. ने 9.5.2013 को कम्पनी के ऊपर भारत सरकार के ऋण और ब्याज इत्यादि को माफ करने की स्वीकृति दे दी ताकि कम्पनी की निवल पूँजी धनात्मक हो सके और पुनर्जीवन प्रक्रिया को गति प्रदान किया जा सके। अतः वित वर्ष 2012-13 में कम्पनी की निवल पँूजी धनात्मक होने के पश्चात 27.6.2013 को उसे बी.आई.एफ.आर. से वापस ले लिया गया।
31.3.2015 को एफ.सी.आई.एल. की प्राधिकृत शेयर पँूजी 800 करोड़ रूपये तथा प्रदत्त शेयर पँूजी 750.92 करोड़ रूपये थी।
प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने 2 मार्च 1952 को सिन्दरी फैक्ट्री के अमोनियम सल्फेट प्लांट का औपचारिक रूप से उद्घाटन किया था। वह 1956-57 में उत्पादन के अपने उच्च स्तर पर था जब उसका प्रचालन अपने निर्धारित क्षमता का 95.51ः रखते हुये 3,39,061 टन का उत्पादन किया था।
सिन्दरी फर्टिलाईजर फैक्ट्री पावर प्लांट, गैस प्लांट, अमोनिया सिन्थेटिक प्लांट और सल्फेट प्लांट के साथ अपने प्रवाह में आयी और 960 टन प्रतिदिन पर अमोनियम सल्फेट का उत्पादन किया।
1954 में 600 टन प्रतिदिन के निर्धारित क्षमता पर कोक ओवन प्लांट को स्थापित किया गया। सिन्दरी फैक्ट्री ने कई प्लांटो को स्थापित किया जो कि इस प्रकार हैः-
एफ.सी.आई.एल. के अन्य अमोनिया/यूरिया प्लांट गोरखपुर, रामागुण्डम और तलचर में हैं जिन्हें क्रमशः जून 1990, मार्च 1999 और मार्च 1999 में बन्द कर दिया गया है क्योंकि इन पुराने प्लांटो का प्रचालन व्यवहारिक नहीं था।